Monday, November 30, 2020

मधुबनी पेन्टिगं-मेरा कुछ प्रयास : सरोज सिन्हा

मधुबनी चित्रकला चित्रकला की एक शैली है। यह बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित है। इसका विषय देवताओं और पौराणिक कथाओं पर आधारित होता है। आम तौर पर चित्र में कोई खाली जगह नहीं छोड़ी जाती है। खाली जगह को फूलों, जानवरों, पक्षियों, और ज्यामितिय आकारों से भरा जाता हैं। चित्रों में प्रयोग किए रंगों को बनाने के लिए पत्तियों, जड़ी बूटियों और फूलों का उपयोग होता है। भारत और नेपाल के मैथिल भाषी क्षेत्र में मधुबनी कला (या मिथिला चित्रकला) का अभ्यास ज्यादा किया जाता है। चित्रकारी प्राकृतिक रंगों, कालिख (LAMP BLACK) और अन्य रंगद्रव्यो का उपयोग करके उंगलियों, टहनियों, ब्रश, निब-पेन और मैचस्टिक्स के साथ किया जाता है। दीवार कला के रूप में यह चित्रकला पूरे क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रचलित है। कपड़ा, हस्तनिर्मित कागज और कैनवास पर किए पेंटिंग का हालिया विकास मुख्य रूप से मधुबनी के आसपास के गांवों में हुआ है। यह चित्रकला पारंपरिक रूप से ताजा प्लास्टर्ड मिट्टी की दीवारों और झोपड़ियों के फर्श पर किया जाता है। दरभंगा में कलाकृति, मधुबनी में वैधी, मधुबनी जिले के बेनिपट्टी और रंती में ग्राम विकास परिषद, मधुबनी चित्रकला के कुछ प्रमुख केंद्र हैं, जिन्होंने इस प्राचीन कला को जीवित रखा है।

शैलियाँ मधुबनी कला की पांच विशिष्ट शैलियों हैं
  • भरनी
  • कचनी
  • तांत्रिक
  • गोदना
  • कोहबर
  • भरनी, कचनी और तांत्रिक शैली मुख्य रूप से उच्च समझे जाने वाले ब्राह्मण और कायस्थ महिलाओं द्वारा की जाती थी। दूसरी जाति की महिलाए सिर्फ गोदना और कोहबर शैली की चित्रकारी ही करती थी। पर अब कोई जातीय भेदभाव नहीं हैं और कोई भी किसी भी शैली के चित्र बना सकता है ।

    पुरस्कृत कलाकार
  • 1969 में सीता देवी को बिहार राज्य पुरस्कार, 1981 में पद्म श्री, 1984 में बिहार रत्न और 2006 में शिल्प गुरु सम्मान
  • 1975 में जगदंबा देवी को पद्मश्री सीता देवी को राष्ट्रीय पुरस्कार
  • 1984 में गंगा देवी को पद्मश्री
  • 2011 में महासुंदरी देवी को पद्मश्री
  • बौवा देवी, यमुना देवी, शांति देवी, चानो देवी, बिंदेश्वरी देवी, चंद्रकला देवी, शशि कला देवी, लीला देवी, गोदावरी दत्ता और भारती दयाल,चंद्रभूषण, अंबिका देवी, मनीषा झा को राष्ट्रीय पुरस्कार।
  • जैसा मैने ऊपर भी लिखा है, मधुबनी पेंटिंग बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक लोककला है। इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है। ऐसी मान्यता है कि यह कला सीता राम विवाह के समय से चली आ रही है जब विवाह के समय राजा जनक ने नगर सजाने का आदेश दिया। उस समय लोगों ने नगर सजाने के लिए चित्रकला की जिस विधा का उपयोग किया वही विधा मधुबनी चित्रकला नाम से प्रसिद्ध है। मिथिला क्षेत्र की महिलाए आज भी अपने घर की दीवारों को सजाने और कोहबर लिखने में इस कला का उपयोग करते है। कोहबर लिखने की परम्परा पूरे बिहार में ही प्रचलित है। 1934 मे आए भूकंप के समय मधुबनी क्षेत्र का दौरा करने आए एक अंग्रेज अधिकारी ने गिरे हुए दीवारों पर इस प्रकार की चित्रकारी देखी और इसे मधुबनी आर्ट का नाम दिया।

    sita sywambar

    सीता स्वयम्बर


    Ganesh

    गणेश

    fish-women

    मछलीवाली

    दुलहन


    पक्षी



    मयूर



    Book Mark



    Wall Hanging



    चित्रकला सीखने के क्रम में सबसे पहले मैने अपने बिहार की प्रसिद्ध लोककला मधुबनी पेंटिंग बनाई है और मेरे चित्रों में से कुछ प्रस्तुत है। मेरी चित्रकला यात्रा कुछ दिनों पहले ही शुरू हुई है। पुर्णबन्दी से उत्पन्न बोरियत को कैसे दूर करने का उपाय सोच रही थी मैं। न कुछ करने का था न कहीं जाने का। ठण्ड में तो स्वेटर इत्यादि बुनकर। अन्य समय में कुछ कढ़ाई सिलाई के काम में मन लगा लेती हूँ। पर अभी कुछ करने को नहीं था। रांची में फिर भी बागवानी और कई और घर के अन्य कामों में व्यस्त हो जाती हूँ पर अभी मैं नॉएडा में पुत्र, पुत्रवधु, पोता और पोती के साथ रह रही हूँ और सिर्फ 11 KM दूर रहने वाली पुत्री और नातियों से कभी-कभार की मिल पाती हूँ। ऐसे में बिटिया ने चित्रकारी करने की सलाह दी। चित्रकारी और मै? मैने हँस कर टाल दिया। पर वह पीछे ही पड़ गई की उसके दोस्त की बहन अनुपम ONLINE CLASS ले रही है चित्रकारी की, और क्यूं न मै एक क्लास करके देख लूं। ठीक लगे तो आगे करना वर्ना न करना। मुम्बई से ऑनलाईन क्लास में चित्रकारी सीखने की शुरुआत मधुबनी चित्रकारी से ही हुई। दरभंगा (मिथिला) की बेटी होने के नाते मधुबनी चित्रकारी से परिचित तो हूँ, प्रशंसक भी हूँ। तो हिम्मत बाँध कर में मैदान में आ ही गई। बिटिया की सासु माँ हमारी प्रिय समधिन भी ज्वाइन कर रही थी जिससे मेरी हिम्मत और भी बढ़ गई। मेरी रुचि आर्ट वर्क में रही है और मुझे अनुपम जी के क्लास में मज़ा आने लगा। मै वारली, मन्डला और चित्रांकन की अन्य विधाएं भी सीख रही हूँ और कालान्तर में उसे भी प्रस्तुत करूंगी।



    No comments:

    Post a Comment

    भूली बिसरी यादें "कनकटवा दादा" लेखिका स्व राजन सिन्हा

    अब तक मैने अपनी रचनाए आपसे सांझा की है, अब मै अपनी स्वर्गीय माँ द्वारा लिखित कथा कहानियाँ मे से एक  सांझा कर रहीं हूँ। यह इस श्रंखला की दूसर...